जब भ्रष्टाचार के खिलाफ कलम चलायेंगे या पहले जिन लोगों द्वारा सिस्टम को सुधारने कि वकालत कि हे एसे क्रांतिकारीयो को या तो मोत मिली या फिर झुठे केस के सिलसले मे लंबी केद मिली है
जब व्यक्ति को पता है कि मोत तो आनी है ओर मृत्यु कि भी मृत्यु सुनिश्चित है
मोत घर के बिस्तर पर या अस्पताल के बिस्तर पर आने से अच्छा क्रांतिकारीयो कि तरह लड़ते लड़ते शहीद हो जाओ
ये बात हर कलमकार आत्मसात कर ले फिर ये सफेद पोश सिस्टम को ईतनी आसानी गंदा नही करपायेंगे !
ये एक पत्रकार सहाफी के हुनर का ही तो कमाल है कि 5 रुपये का नीली रोशनाई का प्लास्टिक कलम,दस रुपये के कागज़ का एक दस्ता, तब एक दस्तावेज़ बन जाता है जब ये कलमकार ,समाज की सुरक्षा, उत्थान और न्याय के लिये, पूरी भ्रष्ट व्यवस्था से तन्हा ही टकरा जाता है। अपराध,ज़ुल्म,अन्याय
भ्र्ष्टाचार और जबर ज़ुल्मी के खिलाफ पीड़ितों का मसीहा बन अपने देश और समाज की सेवा में अपना जीवन तक अर्पण कर देता है
ये बिल्कुल सच है कि पत्रकारिता समूचे विश्व के लिये एक तिलिस्मी दुनिया कि तरह है। यहां लोगों के लिये रहस्य भी है रोमांच भी है,उत्सुकता भी है तो कौतूहल भी।यहां जिज्ञासा भी है तो अन्वेषण भी। यहां चुनोती भी है तो संकल्प भी है। लेकिन क्या पत्रकारिता की ये तिलिस्मी दुनिया इतनी ही आसान है जितनी देखने मे लगती है।
दरअसल ये कांटो से भरी वो राह है।जहां, इस दुनिया को जीने वाला कभी सुख चैन और आराम से नही रह पाता।उसका जीवन उसका अपना नही रह पाता। वो त्याग,बलिदान,कर्म और
सदाचार के कठोर बन्धनों में बंधकर सच्चा कर्मयोगी बन जाता है ।फिर भी पत्रकारिता का आकर्षण कम होने का नाम नही लेता। पत्रकार का जीवन हमेशा उसकी हथेली पर होता है।
कोई भी हो कितना छोटा ही क्यो न हो!
आखिर कब तक लगायेगा गुहार !
आखिर कब तक काटेगा जनसंपर्क के चक्कर हज़ार!
क्या ये ही निराशा कलमकार कि नियति बन गयी है!
जागो‚
कलमकार हो‚ कलम कि मिसाल हो !
खून में उबाल हो, क्रोध की मशाल हो!
सीने मे धड़कते शोले भड़क रहे हों जैसे मन मे भूचाल हो!!
कलम कि स्वतंत्रता का ख्याल हो, न द्वंद, न मलाल हो!
चलाओ कलम ओर कलमकार का स्वाभिमान जगाओ तो कमाल हो !!
एस असरार अली